गुरुवार, 27 अक्टूबर 2016

बादशाह और कुत्ता

!!!---: बादशाह और कुत्ता :---!!!
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"जाके पाँव न फटी बिवाई, वह क्या जाने पीर पराई ?"

एक बादशाह अपने कुत्ते के साथ नाव में यात्रा कर रहा था । उस नाव में अन्य यात्रियों के साथ एक दार्शनिक भी था ।
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कुत्ते ने कभी नौका में सफर नहीं किया था, इसलिए वह अपने को सहज महसूस नहीं कर पा रहा था । वह उछल-कूद कर रहा था और किसी को चैन से नहीं बैठने दे रहा था ।
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मल्लाह उसकी उछल-कूद से परेशान था कि ऐसी स्थिति में यात्रियों की हड़बड़ाहट से नाव डूब जाएगी । वह भी डूबेगा और दूसरों को भी ले डूबेगा । परन्तु कुत्ता अपने स्वभाव के कारण उछल-कूद में लगा था । ऐसी स्थिति देखकर बादशाह भी गुस्से में था । पर, कुत्ते को सुधारने का कोई उपाय उन्हें समझ में नहीं आ रहा था ।
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नाव में बैठे दार्शनिक से रहा नहीं गया । वह बादशाह के पास गया और बोला - "सरकार ! अगर आप इजाजत दें तो मैं इस कुत्ते को भीगी बिल्ली बना सकता हूँ ।"

बादशाह ने तत्काल अनुमति दे दी । दार्शनिक ने दो यात्रियों का सहारा लिया और उस कुत्ते को नाव से उठाकर नदी में फेंक दिया । कुत्ता तैरता हुआ नाव के खूंटे को पकड़ने लगा । उसको अब अपनी जान के लाले पड़ रहे थे । कुछ देर बाद दार्शनिक ने उसे खींचकर नाव में चढ़ा लिया ।
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वह कुत्ता चुपके से जाकर एक कोने में बैठ गया । नाव के यात्रियों के साथ बादशाह को भी उस कुत्ते के बदले व्यवहार पर बड़ा आश्चर्य हुआ । बादशाह ने दार्शनिक से पूछा - "यह पहले तो उछल-कूद और हरकतें कर रहा था, अब देखो कैसे यह पालतू बकरी की तरह बैठा है ?"
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दार्शनिक बोला -

"खुद तकलीफ का स्वाद चखे बिना किसी को दूसरे की विपत्ति का अहसास नहीं होता है । इस कुत्ते को जब मैंने पानी में फेंक दिया तो इसे पानी की ताकत और नाव की उपयोगिता समझ में आ गयी ।"



"जाके पाँव न फटी बिवाई, वह क्या जाने पीर पराई ?"
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मंगलवार, 25 अक्टूबर 2016

महत्त्वपूर्ण प्रश्न

!!!---: महत्त्वपूर्ण प्रश्न :---!!!
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एक बार राजा भोज और संस्कृत के महान् कवि कालिदास संध्या के समय भेष बदलकर घूमने निकले। लौटते समय एक स्थान पर उन्हें दो रास्ते दिखाई दिए और वे सही रास्ता न जानकर सोच में पड़ गए। इधर-उधर उन्होंने देखा तो समीप ही एक कुटिया दिखाई दी । उस कुटिया में एक बुढ़िया निवास करती थी। वे दोनों उसके पास गए । राजा भोज ने पूछा, "री बुढ़िया, यह रास्ता किधर जाता है ?"


बुढ़िया ने उन दोनों की ओर गौर से देखा और फिर जवाब दिया, "यह रास्ता जाता तो कही नहीं, परन्तु हाँ, इस रास्ते से यात्री अवश्य जाते है।

आप लोग है कौन ?"

"हम यात्री ही है ।" राजा भोज ने उत्तर दिया।

"मगर यात्री तो केवल दो ही है - एक सूरज तथा दूसरा चन्द्रमा। इनमें से आप कौन ?"

"जी, हम अतिथि है ।" राजा ने पुन:जवाब दिया।

"अतिथि भी दो ही होते है - एक धन और दूसरा यौवन। आप कौन ?" - बुढ़िया ने पुन: प्रश्न किया ।

"हम राजा है ।"

"राजा भी दो है - इन्द्र तथा यम ।"

"हम क्षमावंत है ।"

"क्षमावंत भी दो है - पृथ्वी एवं नारी। मेरा ख्याल है, आप लोग इनमें से
कोई भी नहीं ।"

"हम परदेशी है।"

"परदेशी भी दो है - जीव और वृक्षपर्ण ।"

"हम गरीब है ।"

"गरीब भी दो ही होते है - बकरी और लड़की ।"

अब तो वे तंग आ गए। आखिर राजा बोले, "बुढ़िया, हम हार गए ।"

"हारनेवाले भी दो ही होते है - एक कर्जदार तथा दूसरा वधु-पिता ।"

बुढ़िया ने देखा कि वे दोनों काफ़ी खीझ - से गये है।

वह बोली, "मै बताती हूँ, आप लोग कौन है, आप है राजा भोज तथा आपके साथी है कवि कालिदास।



आप सामने के रास्ते से अपनी राजधानी उज्जैन की ओर जा सकते हैं ।"

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